गोंडा के घाघ

गोंडा के घाघ

  • Ghagh गोंडा जनपद के थे।
  • इनका जन्म गोंडा के उसी प्रख्यात सरयूपारीण दुबे वंश में हुआ था जिनमें लोकनायक तुलसीदास का आविर्भाव हुआ।
  • घाघ किसानों के तथा किसानी के कवि थे

Mahakavi Ghagh  – उत्तर प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा किसान हो जिसे घाघ पंडित की खेती किसानी तथा नीति की 4-6 पंक्तियां याद ना हो । यह अतिशयोक्ति नहीं की कृषि प्रधान ग्राम जीवन में महाकवि तुलसीदास के बाद महत्वपूर्ण स्थान पाने वाले घाघ पंडित ही हैं । गोंडा के लिए यह सौभाग्य की बात है की यह दोनों ही महाकवि इसी जनपद के थे ।

इनके सामयिक नीति संबंधी छंदों को लोक कहावतों की भांति प्रयोग करते हैं ।  आज भी किसान लोग अपनी खेती-बारी घर गृहस्थी के बहुत से काम इनके छंदों के आधार पर करते हैं। घाघ पंडित के खगोल ज्योतिष तथा कृषि संबंधी ज्ञान पर आज के कृषि वैज्ञानिकों को दांतो तले उंगली दबाना पड़ता है।

महाकवि घाघ पंडित का जन्म सन 1530 में हुआ था| इनका जन्म गोंडा के उसी प्रख्यात सरयूपारीण दुबे वंश में हुआ था जिनमें लोकनायक तुलसीदास का आविर्भाव हुआ। अन्य कवियों के भांति घाघ पंडित के जन्म स्थान के विषय में मतभेद है किंतु हिंदी शब्दकोश जो नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित है, कवि का परिचय देते हुए स्पष्ट कहा है कि घाघ गोंडा के निवासी थे घाघ के जितने भी छंद प्रचलित हैं वह  अवधी भाषा में है । घाघ किसानों के तथा किसानी के कवि थे |

गोंडा में रहकर उन्होंने अपनी खुली निगाहों से भूतल के फलक पर कृषकों के स्वेद जल से लिखी गई पोथी को प्रकृति के उन्मुक्त प्रकाश में पड़ा और उसे छंदों में डालकर लोकमानस को शाश्वत निधि के रूप में अर्पित कर दिया |

Life of Mahakavi Ghagh – घाघ का जीवन

घर के जीवन के बारे में बहुत थोड़ी सामग्री उपलब्ध होती है यह मामूली साक्षर तथा साधारण स्थिति के किसान थे अपितु इनकी प्रतिभा असाधारण थी यह बड़े बुद्धिमान अनुभवी और प्रखर मति थे खेती किसानी के बातें पूछने के लिए गाय बैलों की पहचान करने तथा नीति व्यवहार की बातों में परामर्श कर लेने के लिए दूर-दूर से लोग उनके पास आते रहते थे देखभाल न करने की स्थिति में उत्पन्न हुई खेती की दुर्दशा का अनुभूत वर्णन उन्होंने किया है

अपनी गृहस्थी की बिगड़ती हालत का वर्णन घाघ ने इस प्रकार किया है–

एक तो बसा सड़क पर गांव
दूजे बड़े बड़न मां नाव
तीजे रहे दर्द से हीन
घग्गा हमका दुख ई तीन

 घाघ की कहावतें

 

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।

सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।

यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।

हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।

हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।

पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।

पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।

उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै ।
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा।
जो हल जोतै खेती वाकी और नहीं तो जाकी ताकी।

खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा।

सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।

अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लेंकुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।

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