गोंडा गौरव गीत
सलाम ए सरजमी गोंडा कि तूने जिंदगी बख्शी।
खिरद ने नूर बख्शा, जुल्मतों को रोशनी बख्शी।।
ये है गोंडा यहां इखलाक का हर एक बानी है।
यहीं पैदा हुए तुलसी, बगल सरयू का पानी है।
यहीं नरहरि का है आश्रम, जिसे कहते सभी सूकर।
जहां तुलसी हुए दीक्षित थे गाथा राम की सुनकर।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं पर संस्कृत का व्याकरण लिखा पतंजलि ने।
जिसे माना गया है सबसे उत्तम ग्रंथ दुनिया में।।
यहीं जमदग्नि, पाराशर, च्यवन ऋषि की कहानी है।
यहां बचपन ही क्या गुजरा, यहीं दौरे जवानी है।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं हारा था यूनानी मिनांडर आक्रमणकारी।
हमारी सरजमी ने की हमेशा सबकी रखवारी।।
यहीं रोशन हुई छप्पन में आजादी की चिनगारी।
हुई तालीम फखरुद्दीन की थी, गर्व है भारी। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं काटा फजल भाई ने सर व्यालू कमिश्नर का।
बनाया वार गोरे सैनिकों को अपने खंजर का।।
यहीं महराजा देवीबक्श की जिंदा कहानी है।
अशरफ बख्श राजा सा यहां न कोई सानी है।। सलाम ए सरजमी…।।
न था हिन्दू कोई मुस्लिम नजर में सब बराबर थे।
वतन की आन पर मानिंद शेर ए मिस्ल खंजर थे।।
हुई विक्टोरिया की घोषणा फिर भी नहीं राजी।
लगा दी जान की बाजी, मगर माफी नहीं मांगी।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं पैदा हुए इशरत, महाकवि घाघ विज्ञानी।
अदम, जीपी व असगर सा नहीं दिखता कोई ज्ञानी।
निकलकर छपिया से घनश्याम ने यक पंथ दिखलाया।
जिगर, हैरत के कलमों ने हमेशा राह दिखलाया।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं अफसोस चूमा लाहिड़ी ने मौत का फंदा।
चढ़ा जब हंसके फांसी पर खुदा का नेक वह बंदा।।
कहा फांसी पे चढ़के अलविदा ऐ जिंदगी तुझको।
खुदा का शुक्र गोंडा की मिली दो गज जमीं मुझको।। सलाम ए सरजमी…।।
इसे कुदरत ने खुद ही अपने हाथों से संवारा है।
इसे हिन्दोस्तां की रूहो जां कहके पुकारा है।।
हमारी मद्दुआ या रब! हम अपनी जां से शैदा हों।
खुदा हम जब भी पैदा हों, जिला गोंडा में पैदा हों।। सलाम ए सरजमी…।।
सलाम ए सरजमी गोंडा कि तूने जिंदगी बख्शी।
खिरद ने नूर बख्शा, जुल्मतों को रोशनी बख्शी।।
ये है गोंडा यहां इखलाक का हर एक बानी है।
यहीं पैदा हुए तुलसी, बगल सरयू का पानी है।
यहीं नरहरि का है आश्रम, जिसे कहते सभी सूकर।
जहां तुलसी हुए दीक्षित थे गाथा राम की सुनकर।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं पर संस्कृत का व्याकरण लिखा पतंजलि ने।
जिसे माना गया है सबसे उत्तम ग्रंथ दुनिया में।।
यहीं जमदग्नि, पाराशर, च्यवन ऋषि की कहानी है।
यहां बचपन ही क्या गुजरा, यहीं दौरे जवानी है।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं हारा था यूनानी मिनांडर आक्रमणकारी।
हमारी सरजमी ने की हमेशा सबकी रखवारी।।
यहीं रोशन हुई छप्पन में आजादी की चिनगारी।
हुई तालीम फखरुद्दीन की थी, गर्व है भारी। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं काटा फजल भाई ने सर व्यालू कमिश्नर का।
बनाया वार गोरे सैनिकों को अपने खंजर का।।
यहीं महराजा देवीबक्श की जिंदा कहानी है।
अशरफ बख्श राजा सा यहां न कोई सानी है।। सलाम ए सरजमी…।।
न था हिन्दू कोई मुस्लिम नजर में सब बराबर थे।
वतन की आन पर मानिंद शेर ए मिस्ल खंजर थे।।
हुई विक्टोरिया की घोषणा फिर भी नहीं राजी।
लगा दी जान की बाजी, मगर माफी नहीं मांगी।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं पैदा हुए इशरत, महाकवि घाघ विज्ञानी।
अदम, जीपी व असगर सा नहीं दिखता कोई ज्ञानी।
निकलकर छपिया से घनश्याम ने यक पंथ दिखलाया।
जिगर, हैरत के कलमों ने हमेशा राह दिखलाया।। सलाम ए सरजमी…।।
यहीं अफसोस चूमा लाहिड़ी ने मौत का फंदा।
चढ़ा जब हंसके फांसी पर खुदा का नेक वह बंदा।।
कहा फांसी पे चढ़के अलविदा ऐ जिंदगी तुझको।
खुदा का शुक्र गोंडा की मिली दो गज जमीं मुझको।। सलाम ए सरजमी…।।
इसे कुदरत ने खुद ही अपने हाथों से संवारा है।
इसे हिन्दोस्तां की रूहो जां कहके पुकारा है।।
हमारी मद्दुआ या रब! हम अपनी जां से शैदा हों।
खुदा हम जब भी पैदा हों, जिला गोंडा में पैदा हों।। सलाम ए सरजमी…।।
From Nazm of
Mr. Mohammad Ismile Azad