(Adam Gondvi ) अदम गोंडवी के नाम से मशहूर स्व० श्री राम नाथ सिंह जी का जन्म गोंडा के आटा परसपुर ग्राम में 22 अक्टूबर 1947 को हुआ था |
बचपन से ही उनका झुकाव कविता पाठ की ओर हो गये और वे आसपास के मुशायरों एवं कवि सम्मेलनों में जाने लगे. अस्सी का दशक आते-आते वह हिन्दुस्तान के कवि मंचों पर पहचाने जाने लगे. Adam Gondvi अदम की शायरी सामाजिक अन्याय और विषमता की शायरी है. वह हमें वहां खींच ले जाती है, जहां खड़े होकर हम अपनी व्यवस्था की स्याह सचाई को देखकर उससे गरीबों को होने वाली तकलीफ की शिद्दत का एहसास कर सकते है. गोंडवी का अन्तिम समय अस्पतालों में गुजरा.
18 दिसम्बर 2011 को लखनऊ के एक अस्पताल में उन्होंने अपनी आखिरी साँस ली |
सम्मान: दुष्यंत कुमार पुरस्कार (मध्य प्रदेश सरकार, 1998)
कविता संग्रह : धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़
उनकी कुछ सुप्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं –
काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनाएँ तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में।
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ’ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज चाँदी की तुम्हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिंदोस्तान को नीलाम कर देंगे
ये वंदे-मातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठ कर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे
सदन में घूस दे कर बच गई कुर्सी तो देखोगे
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे